• बजट के बारे में : बजट से इतर

    वित्तमंत्री बजट पेश करने के काफी पहले से कहती रहीं कि वे मध्यमवर्ग से आती हैं और उसका ख्याल रखना उनकी प्राथमिकता में है

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    - अरुण कान्त शुक्ला

    वित्तमंत्री बजट पेश करने के काफी पहले से कहती रहीं कि वे मध्यमवर्ग से आती हैं और उसका ख्याल रखना उनकी प्राथमिकता में है, आयकर के नये रिजाईम में टैक्स से छूट की सीमा 7 लाख रूपये कर दी गई है। ऐसी ही मेहरबानी पुरानी योजना वालों के लिये क्यों नहीं की, यह शोध का विषय है। एक बात जो वित्तमंत्री ने नहीं बताई।

    बजट के बारे में बजट से इतर बात यह है कि देश के आम लोगों की प्राथमिकताएं नीति आयोग में बैठे अर्थशास्त्रियों और वित्त मंत्रालय में बैठे उन उच्च अधिकारियों की प्राथमिकताओं से एकदम भिन्न हैं जो साल दर साल यह तय करते हैं कि सरकार के पास रुपया आयेगा कहां से और रुपया बंटेगा किसे? याद करें कि बजट के ठीक पहले जब खबरिया चैनल्स के एंकर हाथ में माईक लेकर बाजार हाट में लोगों से पूछ रहे थे कि वे बजट में क्या चाहते हैं तो गृहणियां मंहगाई कम होनी चाहिए बोल रही थीं तो युवा रोजगार के अवसर बढ़ने चाहिये, कह रहे थे। वृद्धजनों को दवाईयों की कीमतों और स्वास्थ्य सेवाओं के सस्ते होने की फ़िक्र थी। पर, क्या यह बजट जिसे अपने भाषण के दौरान वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अनेक बार अमृतकाल का पहला सप्तऋषि बजट कहकर पेश किया गया है, आम लोगों की उन प्राथमिकताओं को पूरा करता है?

    वित्तमंत्री ने जिन वस्तुओं के सस्ते होने की संभावना व्यक्त की है उनमें से किसी का भी आम आदमी के रोजमर्रा जीवन से कोई सीधा संबंध नहीं है। मसलन, मोबाईल पार्ट्स और टेलीविजन के ओपन सेल के कलपुर्जों पर कस्टम ड्यूटी घटाई गयी है। टीव्ही पर आयात शुल्क कम होगा, उसके सस्ते होने की संभावना है। रबर पर ड्यूटी कम होने से खिलौने, साईकिल, आटोमोबाईल सस्ते हो सकते हैं। वैसे यदि अभी तक के बजटों में जब कभी भी इस तरह कस्टम ड्यूटी या आयात शुल्क या अन्य कोई भी टैक्स कम करके चीजों के सस्ते होने का सब्जबाग दिखाया गया है तो अनुभव तो यही कहता है कि वह सब्जबाग ही होता है और उसका कोई भी लाभ उपभोक्ता तक नहीं पहुंच पाता है। स्वयं नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश की 25 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करती है याने हर चौथा भारतीय गरीब है।

    पर, समय-समय पर आने वाली वैश्विक रिपोर्ट और नीति आयोग की रिपोर्ट की बात को छोड़ भी दें तो स्वयं हमारे प्रधानमंत्री गर्व से बार-बार बताते हैं कि वे देश के 81 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त 5 किलो राशन पिछले 2 साल से दे रहे हैं और यह विश्व की सबसे बड़ी खाद्यान सहायता योजना है। अब जिस महंगाई के कम होने की राह यह देख रहे होंगे, उसे तो इस बजट में छुआ भी नहीं गया है।

    भारत में मध्यम वर्ग कितना विशाल है, जिसका उदाहरण अनेक बार प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री सहित सरकार से लगभग सभी जनता से दो-चार होने वाले नुमाइंदे करते रहते हैं और उसके बारे में कितनी चिंतित यह सरकार है, वह भी जान लेते हैं। पिछले वर्ष लगभग मई माह के अंत में 'प्रधानमंत्री को सलाह देने वाली आर्थिक सलाहकार परिषद' के अध्यक्ष विवेक देवरॉय 'भारत में असमानता की दशा' पर एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंपी थी।

    रिपोर्ट के अनुसार यदि कोई भारतीय 25000 रुपया प्रति माह या वर्ष भर में 3 लाख रुपया कमा रहा है तो वह उन 10 फीसदी भारतीयों में से एक है जो उच्चतम वेतन अर्जित करते हैं। इसका सीधा मतलब था कि देश के 90 फीसदी लोग 25000 रूपये प्रतिमाह भी नहीं कमाते हैं। यह रिपोर्ट लोगों के आय विवरण, बाजार में श्रम की उपयोगिता, लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा और घरेलू सुविधाओं और स्थिति के आधार पर समाज में कितनी आर्थिक असमानता मौजूद है उस पर न केवल प्रकाश डालती है, अंत में यह भी बताती है कि वर्ष 2017-2018 से 2019-2020 के मध्य किस तरह समाज के उच्चतम 1 फीसदी की आय 15 फीसदी बढ़ी, जबकि उसी दौरान नीचे के 10 फीसदी की आय 1 फीसदी कम हुई। रिपोर्ट में अंत में सुझाव दिया गया था कि इस असमानता को कम करने के लिये एक शहरी रोजगार योजना और सार्वभौम आधार आय योजना का लाना बहुत जरूरी है।

    रोजगार सृजन वह क्षेत्र है जिस पर वित्तमंत्री को सबसे अधिक फोकस इसलिए करना चाहिए था कि बीता वर्ष बेरोजगार युवाओं के आंदोलनों से भरा हुआ वर्ष था। रेलवे में भर्तियों को लेकर हुआ आन्दोलन और अग्निवीर योजना के नाम पर युवाओं के साथ रोजगार के नाम पर किया गया आन्दोलन भुला देने योग्य घटनाएं नहीं हैं। यद्यपि जनवरी 2023 में बेरोजगारी की दर कम हुई है पर 7 फीसदी से अधिक की यह दर उस देश के लिये बहुत अधिक है जहां के लिये देश के प्रधानमंत्री कहते नहीं थकते हैं कि यह दुनिया की सबसे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और विश्व गुरु बनने की राह पर है। पर, अफ़सोस की बात है की निर्मला जी ने रोजगार सृजन के मुद्दे सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र द्वारा किये जा रहे अवेहलनापूर्ण रवैये पर कोई चिंता जाहिर करने का उपक्रम भी नहीं किया।

    ये जो रोजगार मेला भरवा कर टीव्ही में प्रधानमंत्री से रोजगार पत्र देने का इवेंट आयोजित किया जा रहा है, उससे रोजगार के संकट को नहीं निपटा जा सकता है। बजट में पूंजीगत व्यय 7.5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख किया गया है। इसे वित्तमंत्री ने वर्तमान बेरोजगारी संकट के लिये ब्रह्मास्त्र बताया है। सरकार इससे कौशल प्रशिक्षण केंद्र खोलकर युवाओं को विश्वस्तरीय प्रशिक्षण देने का इरादा रखती है। मुझे याद है जब अटल जी प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने एक बार कहा था कि हम युवाओं को प्रशिक्षित करेंगे और उन्हें देश में रोजगार नहीं मिलता है तो वे विदेश में रोजगार प्राप्त करने योग्य होंगे। यदि इन कौशल केन्द्रों की स्थापना का उद्देश्य युवाओं की अंतरराष्ट्रीय पहुंच बढ़ाने के लिये है तो हम पहले से प्रतिभा पलायन से पीड़ित मुल्क में प्रतिभाओं को पलायन का एक और मौक़ा देने की कगार पर बैठ रहे हैं।

    यह भी एक संयोग ही था कि वित्तमंत्री के बजट के हलुआ वितरण के लगभग 13 दिनों पूर्व ही ऑक्सफैम की वह बहुचर्चित रिपोर्ट सरवाईवल ऑफ़ रिचेस्ट आई जिसमें पूरे विश्व के साथ भारत के अमीरों और भारत में व्याप्त असमानता पर भी बात की गई थी। मैं उसके विस्तार में न जाकर केवल वही बात यहां उद्धृत करूंगा, जिसमें ऑक्सफैम के सीईओ अमिताभ बेहार ने बताया था कि भारत में हाशिये पर रहने वाले दलित, आदिवासी, मुस्लिम, और महिलाएं भारत के अमीरों के अस्तित्व को सुनिश्चित करते हैं। बेहार ने भारत के वित्तमंत्री से अनुरोध करते हुए कहा था कि 'गरीब अमीरों की तुलना में अनुपातहीन रूप से उच्च करों का भुगतान कर रहे हैं, आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर अधिक खर्च कर रहे हैं। समय आ गया है कि अमीरों पर कर लगाया जाये और यह सुनिश्चित किया जाये कि वे अपने उचित हिस्से का भुगतान करें। इसके लिये बेहर ने केंद्रीय वित्तमंत्री से धन कर और उत्तराधिकार कर जैसे प्रगतिशील कर उपायों को लागू करने का आग्रह किया जो असमानता को कम करने में ऐतिहासिक रूप से प्रभावी साबित हो चुके हैं।

    यह तय है कि निर्मला जी किसी भी विदेशी रिपोर्ट और सलाह को तवज्जो नहीं देतीं। यह दीगर बात है कि उसी सम्मेलन में पहले दिन प्रधानमंत्री अपना उद्बोधन देकर भारत युवाओं को कौशल प्रदान करने के लिये और उद्यमी बनाने के लिये क्या कर रहा है, विस्तार से बताते हैं। बहरहाल, जिस पूंजीगत व्यय को बढ़ाकर रोजगार सृजन के लिये निर्मला जी ब्रह्मास्त्र बता रही हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट में 29400 करोड़, ग्रामीण विकास आबंटन से 5113 करोड़, खाद्यान सब्सिडी में 89,844 करोड़, बच्चों के मध्यान्ह भोजन और प्रधानमंत्री पोषण योजना में 1200 करोड़, प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना में 8000 करोड़ रुपये कम करके जुटाया गया है।

    अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक बताते हैं कि वित्तमंत्री ने चार बुनियादी बातों को नजरअंदाज कर दिया। पहली, यदि बिलकुल उतनी ही राशि, यदि सामाजिक क्षेत्र पर खर्च की जाये, तो उतनी ही मात्रा में रोजगार सृजन होगा। दूसरी, यह राशि यदि सामाजिक क्षेत्र पर खर्च की जाती तो सीधे तौर पर कामकाजी लोगों के लिये फायदेमंद होती, जिनके मामले में, जैसा कि संसद में बजट से एक दिन पूर्व पेश किये गये आर्थिक सर्वेक्षण में स्वीकार किया गया है कि वास्तविक मजदूरी में गिरावट आई है।

     

    तीसरा, सरकार जो राशि सामाजिक क्षेत्र में खर्च करती है उसका गुणात्मक प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मेहनतकश की क्रयशक्ति को बढ़ाता है, यह सार्वजनिक पूंजीगत व्यय के प्रभावों से बहुत अधिक है। बेरोजगारी पर प्रभाव डालने के लिये पूंजीगत व्यय अधिक करना होता है जबकि उतनी ही राशि सामाजिक क्षेत्र में खर्च करने से अधिक प्रभाव हासिल होता है। और चौथा, पूंजीगत व्यय का अधिकांश हिस्सा पूंजीगत वस्तुओं के आयात के रूप में 'बाहर' निकल जाता है, जिससे कामकाजी लोगों की खपत सामर्थ्य में कोइ बढ़ोतरी नहीं होती।

    जैसा कि वित्तमंत्री बजट पेश करने के काफी पहले से कहती रहीं कि वे मध्यमवर्ग से आती हैं और उसका ख्याल रखना उनकी प्राथमिकता में है, आयकर के नये रिजाईम में टैक्स से छूट की सीमा 7 लाख रूपये कर दी गई है। ऐसी ही मेहरबानी पुरानी योजना वालों के लिये क्यों नहीं की, यह शोध का विषय है। एक बात जो वित्तमंत्री ने नहीं बताई और उनसे पूछने का मन करता है कि 7 लाख से मात्र कुछ हजार, मान लीजिये 10,000 रूपये आय अधिक होने पर वह व्यक्ति मध्यम वर्ग से इतना बाहर हो जाता है कि उसकी आय पर कर लगना 3 लाख रूपये से शुरू हो जाएगा। बहरहाल, 3 लाख से ऊपर कमाने वाले 10 फीसदी में अडानी साहब भी हैं तो अम्बानी साहब भी, वे तो खुश हैं, बाकी 90 फीसदी के लिये राष्ट्रवाद से लेकर हिज़ाब तक अनेक झुनझुने हैं, जिनसे वे बहल जाते हैं।

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